Wednesday 27 September 2017

जाने नवरात्रि में दुर्गा अष्ट्मी और कन्या पूजन का सही तरीका- नवरात्री का पूरा लाभ पाने के लिए अपनाये ये विधियां

नौ कन्याओ को नौ देवीओ की तरह पूजने के बाद ही पूरा होता है नवरात्रि का वृत्त 



चैत्र नवरात्री मे अष्टमी का सर्वाधिक महत्व है। इस दिन काली, महाकाली, भद्रकाली, दक्षिणकाली तथा बिजासन माता की पूजा भी की जाती है। 

नवरात्रि के नौ दिनों में मां के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि में कई भक्त माँ का व्रत रखते हैं और मां को खुश करने का प्रयास करते हैं।

नवरात्रि खत्म होने से पहले अष्टमी या नवमी को कन्याओं को भोजन कराया जाता है। मान्यता है कि कन्याएं मां दुर्गा का साक्षात रूप होती हैं। कन्याओं को भोजन कराने के बाद और मां का प्रसाद ग्रहण करके ही व्रत खोला जाता है।

नवरात्रि की अष्टमी या नवमी को यदि दो वर्ष की कन्याओं को भोजन कराया जाए और पूजा की जाए तो कई तरह के फायदे मिलते हैं। दो साल की कन्याओं को कौमारी कहा जाता है। ऐसे में इनके पूजन से दुख और दरिद्रता दूर होती है।



नवरात्र के आठवें दिन यानी अष्टमी को महागौरी की पूजा होती हैं। नवरात्र का यह दिन अपने आप में ही खास है, वैसे तो नवरात्र में हर दिन कन्या पूजा का विधान हैं। लेकिन अष्टमी को औरतें अपने सुहाग के लिए मां को चुनरी अर्पित करती हैं, महागौरी को आदि शक्ति माना जाता है।

देवी गौरी की पूजा भी उसी तरह होती है, जिस तरह से सप्तमी तिथि तक मां की पूजा हुई। महागौरी ने तप करके गौर वर्ण हासिल किया था, इन्हें अन्नपूर्णा देवी भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की नवरात्र की अष्टमी तिथि को इनकी पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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